• Episode 39 - बेवकूफ़ DNA
    Jun 17 2025
    मैं लाइटर रगड़ कर चिंगारी निकाल लेता हूं और उससे मानवजाति के पूर्वजों को श्रद्धांजलि देता हूं।
    Voir plus Voir moins
    3 min
  • Episode 38 - बस दो मिनट
    May 14 2025
    कहीं-कहीं किसी दीवार, खिड़की या घर को देखकर ऐसा भी लगता है, जैसे मैं यहां पहले भी आया था। इस खिड़की से मैंने भी कभी बाहर को झांका था, घाटी में आवाज़ दी थी। इस दरवाज़े से बाहर निकलते वक्त, आवारा हवा मेरे भी बालों से टकराई थी। इस दीवार पर थक कर कभी मैंने भी पीठ टिकाई थी।
    Voir plus Voir moins
    4 min
  • Episode 37 - सबसे गुस्सा
    May 1 2025
    पूरे घर में वो एक कोना मय्यसर नहीं की मैं सुकून से बैठ कर कुछ पलों के लिए अपनी आँखें बंद कर सकूं। आँखें बंद करने पर चिंताओं की छाया डोलने लगती है, इसलिए मैं आँखें खुली रखता हूं।
    Voir plus Voir moins
    4 min
  • Episode 36 - कर लो दुनियां मुट्ठी में
    May 1 2025
    मुझे ठीक से याद भी नहीं कि मैंने अपने आपको कमज़ोर मानना कब शुरू किया। कब से मैंने ख़ुद के लिए खड़ा होना छोड़ दिया था।
    Voir plus Voir moins
    3 min
  • Episode 35 - पितृ दोष
    Mar 23 2025
    उसे भूख लगी है। उसकी मां ने रख छोड़ा है, अखबारी पन्ने में लिपटा ब्रेड पकोड़ा। उस ब्रेड पकोड़े पर नज़र है, सामने वाले घर के छज्जे पर बैठे कव्वे की। कव्वे का मानना है कि यदि वो ये ब्रेड पकोड़ा खा लेगा तो बच्चे का पितृ दोष दूर हो जाएगा।
    Voir plus Voir moins
    4 min
  • Episode 34 - मेरी मैं-मैं, मैं जानूं
    Mar 11 2025
    मैं जीवन में अर्थ ढूंढते ढूंढते थक गया हूं। अब ऐसी स्थिति आ चुकी है कि ज़िंदगी के मायने ढूंढना और मतलबी होना, एक दूजे के समानांतर लगने लगा है।
    Voir plus Voir moins
    4 min
  • Episode 33 - Solo Traveler
    Mar 3 2025
    मुझे काफ़ी हद तक ये बात सही लगती है कि जीवन खेद के साथ ख़त्म करने वाली यात्रा तो बिल्कुल नहीं है। अगर गौर से देखा जाए तो आनंद एक अवस्था है, जो भीतर से फूटती है। एक कस्तूरी है खुद में, जिसका हमें संभवतः ज्ञान नहीं।
    Voir plus Voir moins
    4 min
  • Episode 32 - लम्बी उड़ान
    Feb 19 2025
    मुझे क्या कभी मौका मिलेगा कि मैं अपने हाथ फैला कर नीचे वादियों में कूद जाऊं और मुझे अंजाम की चिंता न हो। नीचे सूरजमुखी के फूलों से भरा मैदान हो, फूल मुझे देखते हुए मुस्कुरा रहे हों। बाहें फैला कर खड़े हों। और मैं उनके ऊपर से उड़ता चला जा रहा हूं, एक बड़ी चील की मानिंद।
    Voir plus Voir moins
    4 min