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Page de couverture de भारत के शास्त्रीय नृत्य - भाग - २ (भरतनाट्यम) | Classical Dance forms of India – Part 2 (Bharatnatyam)

भारत के शास्त्रीय नृत्य - भाग - २ (भरतनाट्यम) | Classical Dance forms of India – Part 2 (Bharatnatyam)

भारत के शास्त्रीय नृत्य - भाग - २ (भरतनाट्यम) | Classical Dance forms of India – Part 2 (Bharatnatyam)

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भरतनाट्यम: भरतनाट्यम भारत की सबसे पुरानी शास्त्रीय नृत्य परंपरा है जिसमें नृत्यांगनाएं वेदों, पुराणों,रामायण, महाभारत और खासकर शिव पुराण की कथाओं को आकर्षक भाव भंगिमाओं और मुद्राओं के माध्यम से प्रदर्शित करते हैं। यह तमिलनाड़ू का राजकीय नृत्य है। भरतनाट्यम को देवदासियों से जोड़ा जाता है पर कई पुरातत्व वैज्ञानिकों ने इसे उससे बहुत पहले की नृत्य कला बताया है। भरतनाट्यम को मंदिरों में ही किया जाता था। कई पौराणिक मंदिरों में बनी प्रतिमाएं भरतनाट्यम की मुद्राओं से मिलती हैं जैसे सातवीं शताब्दी में बनी बादामी के गुफा मंदिरों में मिली नटराज की मूर्ति। बीसवीं शताब्दी में यह नृत्य मंदिरों से निकलकर भारत के अन्य राज्यों और साथ ही साथ विदेशों तक भी पहुँच गया। स्वतंत्रता के उपरान्त इस नृत्य को खूब ख्याति मिली। भरतनाट्यम के भारत के बैले के रूप में जाना जाने लगा। भारत के बाहर यह नृत्य कला अमेरिका, यूरोप, कैनेडा, खाड़ी देशों, बांग्लादेश और सिंगापूर में भी सिखाया जाता है। विदेशों में रह रहे भारतीयों के लिए यह और अन्य शास्त्रीय नृत्य कलाएं अपनी संस्कृति से जुड़े रहने एक जरिया है और आपसी मेल-मिलाप का बहाना भी । यह नृत्य कला लगभग दो हज़ार साल पुरानी है। दूसरी शताब्दी से भरतनाट्यम का वर्णन प्राचीन तमिल महाकाव्य सिलप्पाटिकरम में पाया जा सकता है, जबकि 6वीं से 9वीं शताब्दी के मंदिरों की मूर्तियाँ बताती हैं कि यह पहली सहस्राब्दी के मध्य तक एक अत्यधिक परिष्कृत परिष्कृत यानी sophisticated प्रदर्शन कला के रूप में स्थापित हो चूका था। उन्नीसवीं शताब्दी तक यह नृत्य मंदिरों तक ही सीमित था। बड़ी अजीब सी बात है की आधुनिक माने जाने वाले अंग्रेज़ों ने अपने राज में भारत के कई शास्त्रीय नृत्यों को वेश्यावृत्ति से जोड़ कर उनका मख़ौल उड़ाया और १९१० में भरतनाट्यम पर पूर्ण रूप से रोक लका दी जिससे धीरे-धीरे ये कलाएं मरने लगीं। पर लोगों ने इसका जी जान से विरोध किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय अपनी कला और संस्कृति को अंग्रेज़ों के विरुद्ध फिर से अभिव्यक्ति दी। भरतनाट्यम को पहले सादीरट्टम, परथैयार अट्टम और ठेवारट्टम भी कहा जाता था। सन १९३२ में ई कृष्णा अय्यर और रुक्मिणी देवी ने मद्रास संगीत अकादमी के सामने इस प्राचीन नृत्य कला को ...
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