Épisodes

  • चाणक्य नीति | क्यूँ नहीं करना चाहिए एक दूसरे से भेद प्रकट ? सुनें श्लोक
    May 2 2025

    जो लोग एक-दूसरे के भेदों को प्रकट करते हैं, वे उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं जैसे बांबी में फंसकर सांप नष्ट हो जाता है।

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  • कर्म का त्याग करने से तुम्हारे शरीर का भरण पोषण भी संभव नहीं होगा। श्लोका- Everyday
    Feb 12 2025

    तुम्हें निर्धारित वैदिक कर्म करने चाहिए क्योंकि निष्क्रिय रहने से कर्म करना श्रेष्ठ है। कर्म का त्याग करने से तुम्हारे शरीर का भरण पोषण भी संभव नहीं होगा।

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  • दिव्य चेतना में स्थित मनुष्य | भगवतगीता श्लोक
    Jan 30 2025

    श्रीकृष्ण कहते हैं: हे पार्थ! जब कोई मनुष्य स्वार्थयुक्त कामनाओं और मन को दूषित करने वाली इन्द्रिय तृप्ति से संबंधित कामनाओं का परित्याग कर देता है और आत्मज्ञान को अनुभव कर संतुष्ट हो जाता है तब ऐसे मानव को दिव्य चेतना में स्थित कहा जा सकता है।

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  • इस प्रकार मनुष्य प्रजाति करती है अपनी बुद्धि का विनाश | श्लोका- Everyday
    Jan 20 2025

    जिस प्रकार प्रचंड वायु अपने तीव्र वेग से जल पर तैरती हुई नाव को दूर तक बहा कर ले जाती है उसी प्रकार से अनियंत्रित इन्द्रियों मे से कोई एक जिसमें मन अधिक लिप्त रहता है, बुद्धि का विनाश कर देती है

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  • कौन है संसार का सर्वभक्षी शत्रु | श्लोका - Everyday
    Jan 13 2025

    अकेली काम वासना जो रजोगुण के सम्पर्क में आने से उत्पन्न होती है और बाद में क्रोध का रूप धारण कर लेती है, इसे पाप के रूप में संसार का सर्वभक्षी शत्रु समझो |

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  • क्या होती है पूर्ण ज्ञानावस्था, सुनिए श्लोक | श्लोका - Everyday
    Jan 8 2025

    जो सभी परिस्थितियों में अनासक्त रहता है और न ही शुभ फल की प्राप्ति से हर्षित होता है और न ही विपत्ति से उदासीन होता है वही पूर्ण ज्ञानावस्था में स्थित मुनि है।

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  • मुनियों के लिए होता है दिन अज्ञानता की रात्रि | श्लोका-Everyday
    Dec 24 2024

    जिसे सब लोग दिन समझते हैं वह आत्मसंयमी के लिए अज्ञानता की रात्रि है तथा जो सब जीवों के लिए रात्रि है, वह आत्मविश्लेषी मुनियों के लिए दिन है।

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  • योगीजन केवल अपने शुद्धिकरण के उद्देश्य से कर्म करते हैं | श्लोका- Everyday
    Dec 17 2024

    योगीजन आसक्ति को त्याग कर अपने शरीर, इन्द्रिय, मन और बुद्धि द्वारा केवल अपने शुद्धिकरण के उद्देश्य से कर्म करते हैं |

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