5. पवित्र आत्मा ही मनुष्यजाति की एकमात्र आशा है (यशायाह ६:१-१३)
Échec de l'ajout au panier.
Échec de l'ajout à la liste d'envies.
Échec de la suppression de la liste d’envies.
Échec du suivi du balado
Ne plus suivre le balado a échoué
-
Narrateur(s):
-
Auteur(s):
À propos de cet audio
यशायाह अध्याय 6 में जिसे हमने अभी पढ़ा, उसमे हम भविष्यद्वक्ता यशायाह को परमेश्वर द्वारा दिखाए गए विभिन्न दर्शन देख सकते हैं। इन दर्शनों में, भविष्यवक्ता यशायाह ने साराप को देखा, जिनमें से प्रत्येक के छह पंख थे। साराप ने अपने दो पंखों से अपना मुंह ढँका हुआ था, दो से पैरों को, और दो से वे उड़ रहे थे। वे आपस में चिल्ला उठे और परमेश्वर की स्तुति करते हुए कहने लगे:
“सेनाओं का यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है;
सारी पृथ्वी उसके तेज से भरपूर है!” (यशायाह ६:३)। हम नए नियम के प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में भी स्वर्गदूतों को स्तुति करते हुए देख सकते है।
भविष्यद्वक्ता यशायाह डर के मारे काँप उठा, और अपने आप से कहा, “मैं नष्ट हो गया हूँ, क्योंकि मैंने उस पवित्र को देखा है!” जब उसने स्वयं को परमेश्वर के सामने खड़ा देखा, तो वह जान सका कि वह मृत्यु के लिए अभिशप्त है। परन्तु एक साराप ने वेदी पर से चिमटे से अंगारा ले कर यशायाह के मुंह को छुआ, और उस से कहा, तेरा अधर्म दूर हो गया।
https://www.bjnewlife.org/
https://youtube.com/@TheNewLifeMission
https://www.facebook.com/shin.john.35