Épisodes

  • रोज़ाना (ब्रेक पर): सुनते रहिए
    May 23 2025

    रोज़ाना में अब वक्त है कुछ देर रुकने का. 50 एपिसोड तक के रास्ते में नए-पुराने दोस्तों का साथ मिला. आप सबका शुक्रिया. रोज़ाना है तो वापिस लौट कर आएगा ही. तब तक सुनिए और हो सके तो सुनवाइए और बताइए भी.

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  • रोज़ाना (Ep. 50): मीडिया और ज़िंदगी
    May 22 2025

    मीडिया से परेशान हो जाएंगे, इसका अंदाज़ा कुछ वक़्त पहले तक नहीं था. अब जब है तो परेशानी पर परेशान रहने से बेहतर है कि ख़ुद को जाल में फंसा महसूस करते रहने के बजाए, इस नए सच के साथ रिश्ते को नया रूप दिया जाए.

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  • रोज़ाना ( Ep. 49): जर्नलिज़्म और तकनीक
    May 21 2025

    तकनीक ने जर्नलिज़्म को बहुत फैलाव दिया है. डिजिटल दुनिया में इस रिश्ते को नई संभावनाएं तो मिली लेकिन साथ ही मिली रफ़्तार की चुनौती. जो हालात हमारे सामने हैं उन्हें देखते हुए ये समझना ज़रूरी है कि तेज़ भागने की लत लगाना पत्रकारिता के अंदरूनी ढांचों और उसकी ज़रूरतों के लिए कारगर है?

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  • रोज़ाना (Ep. 48): समाचारों की मरम्मत
    May 19 2025

    सवाल बहुत बड़ा और गंभीर है कि समाचारों की दुनिया की मरम्मत की जाए तो कैसे? चूंकि पत्रकारिता को चुनौती पूरी दुनिया में मिली है तो इसे ठीक करने का कोई एक हल तो नहीं सकता. कुछ तरीक़े ज़रूर हैं जिनमें उम्मीदें नज़र आती हैं.

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  • रोज़ाना (Ep. 47): ख़बरें बेहाल, ख़बरों से बेहाल
    May 16 2025

    समाचारों की दुनिया से भरोसा उठने की बातें लगातार हो रही हैं लेकिन क्या ख़बरों के बिना अपन दुनिया की कल्पना कर सकते हैं हम? अभी तक तो ऐसा लगता नहीं. किसी ना किसी रूप में हम सूचनाओं और ख़बरों से जुड़े ही हैं तो फिर उस पर बात किए बिना आंख मूंद कर चलते चले जाना तो मुमिकन नहीं.

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  • रोज़ाना (Ep. 46): जर्नलिज़्म से शिकवा
    May 15 2025

    पत्रकारिता के हाल पर अगर आप दुखी होते हैं तो ये समझना चाहिए कि ऐसा क्यों है? ये नाज़ुक वक्त है और समाचारों की दुनिया के लिए बदलाव का अहम पड़ाव. इसे केवल मायूसी से पार नहीं किया जा सकेगा.

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  • रोज़ाना (Ep. 45): न्यूज़ मीडिया और हम
    May 14 2025

    समाचारों की दुनिया के साथ क्या हुआ है और उसके चलते हमारे साथ क्या हुआ है, इसे समझने की कोशिशें बहुत हो रही हैं लेकिन ठोस जवाब अब भी नहीं है. चुनौतियां दिख रही हैं लेकिन उनके पार जाने का कारगर रास्ता नहीं. मीडिया और हमारे रिश्ते को समझने की एक कोशिश.

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  • (Ep. 44): चम्मचों, कोई तुम सा नहीं!
    May 13 2025

    जब किचन और घर के कामों में लगने वाले लेबर यानी औरतों के श्रम को हाशिए पर धकेल दिया गया तो फिर रसोई के बरतनों की रोज़ की ज़िंदगी में क्या भूमिका है, इस पर बात करने की ज़रूरत क्यों महसूस होगी भला. आपने टेबल पर यूं ही पड़ी दिखने वाली चम्मचों के बारे में कभी सोचा ? मैंने सोचा है, ज़रा सुन कर देखिए.

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