Épisodes

  • EP 21- जाने किस आँच में शबनम जलती है
    Nov 15 2024
    मुझे लगता है कि दिनभर अपने झमेलों में उलझा आसमान रात को समय चुरा कर अपनी धरती को प्रेम-पत्र लिखता होगा। इन हरी पत्तियों और रंगीन फूलों पर हज़ारों चिट्ठियाँ लिख जाता होगा और अपने अव्यक्त प्रेम को इन प्रेम पत्रों में हज़ारों हज़ार ख्वाहिशें, हज़ारों उम्मीदें, हसरतें, मनुहार और आभार व्यक्त करता होगा..जो चाहे […]
    Voir plus Voir moins
    Moins d'une minute
  • EP 20- तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई
    Oct 30 2024
    सुना है, कहीं दूर रेगिस्तानों में रेत की नदियाँ बहती हैं। रेत के झरने बहते हैं। बवंडर उठते हैं, रेत के तूफ़ान क़यामत ढाते हैं।क्या रेत की फ़ितरत बूंदों की तरह है? बूँदें भी तो तूफ़ान उठा देती हैं। बूँद में समंदर समाया है या समंदर में बूंद? उसी तरह रेत में रेगिस्तान समाया है […]
    Voir plus Voir moins
    Moins d'une minute
  • EP 19- तेरा ज़िक्र है या इत्र है
    Oct 15 2024
    चंदन के पेड़ आग में जलाने के लिए नहीं होते। वे तो अनमोल खुशबू हैं, उसे संजोना होता है मन की गहराइयों में। सच्चे रिश्तों की खुशबू कभी नहीं जाती। वो आपका पीछा नहीं छोड़ती। पत्ती-पत्ती झड़ जाती है लेकिन खुशबू चुप नहीं होती, बशर्ते आप उसे सुन सकें…..महसूस कर सकें। जब-जब ज़िक्र होगा उस […]
    Voir plus Voir moins
    Moins d'une minute
  • EP 17- जब जंगल जल उठे अपनी ही छाँव में
    Sep 15 2024
    जंगल में भटकता हुआ हिरन जिस खुशबू से परेशान रहता है, वह उसी की कस्तूरी है, यह उसे कौन बताए? चाँद, जो हमेशा से सुंदरता और प्रेम का प्रतीक बना बैठा है, उसके पास दर्द के गहरे स्याह गड्ढे हैं, जिसे कोई प्रेमी देख नहीं पाता| सूरज की अपनी पीड़ा है, वह सारे ब्रह्मांड का […]
    Voir plus Voir moins
    Moins d'une minute
  • EP 16- ज़ंजीरें तो ज़ंजीरें हैं
    Aug 30 2024
    सारी खिड़कियाँ, दरवाजे बंद कर लिए हमने और कमाल ये कि किसी की सुननी नहीं है हमें, न अब कुछ समझना ही है, खुद की पहनी ज़ंजीरों की चुभन में रस खोजते हैं हम। फर्ज़ी हँसी है हमारी, और मुस्कानें भी झूठी । क्या हम आज़ाद हैं? अपनी बनाई ज़ंजीरों से मुक्त होना ही होगा, […]
    Voir plus Voir moins
    Moins d'une minute
  • EP 15- जाने वालों ज़रा मुड़ के देखो इधर
    Aug 15 2024
    क्या देह से अधूरे इंसान, इंसान नहीं होते? कोई व्यक्ति क्या सिर्फ़ इसलिए हँसी का पात्र बन जाए क्योंकि वह विकलांग है या हमारे जैसा नहीं है| क्या देह से अधूरे लोगों का अपना स्वाभिमान नहीं होता? उनके सपने नहीं होते? उनमें कुशलता नहीं होती? उनमें प्रेम नहीं होता? देह से अधूरे हैं, तो क्या […]
    Voir plus Voir moins
    Moins d'une minute
  • EP 14- ये छाँव कहाँ पायेगा?
    Jul 30 2024
    हम घने पेड़ और गहरे रिश्तों को नष्ट करने के बाद, अपनी सुविधा, सुख और ज़रूरत के बोनसाई उगाने लगते हैं जिन्हें हम जब-तब उपयोग में लाते हैं। ये प्लास्टिक के गमलों में लगे बोन्साई हमारी आँखों को सुकून दे सकते हैं लेकिन हमारी रूह को सुकून, उस घने पेड़ की छाँव में ही मिलेगा। याद […]
    Voir plus Voir moins
    Moins d'une minute
  • EP 13- ओ मेरे माझी! अब की बार
    Jul 15 2024
    भावनाओं की, अहसासों की गठरी थी। सपनों का बड़ा सा डब्बा था। जिसे मैंने खूब संभाल कर रखा था। इच्छाओं, ख्वाहिशों की पोटलियाँ थी। कोई माँझी बचपन ले गया। कोई जवानी माँग बैठा। कोई मन तो कोई तन, कोई मुस्कान छीन ले गया, कोई होश, कोई हंसी, कोई ख़ुशी, कोई पहचान, कोई अरमान… अब तो […]
    Voir plus Voir moins
    Moins d'une minute