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अपरा और परा प्रकृति: द्वंद्व और समग्रता

अपरा और परा प्रकृति: द्वंद्व और समग्रता

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यह एपिसोड श्रीमद्भगवद्गीता के सातवें अध्याय ज्ञानविज्ञानयोग पर आधारित है, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण हमें भौतिक और आध्यात्मिक प्रकृति के रहस्य से अवगत कराते हैं।

🔹 अपरा प्रकृति – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार—भौतिक जगत की आधारशिला।
🔹 परा प्रकृति – चेतना और जीवन का स्रोत, जो जड़ तत्वों को सक्रियता और जीवन प्रदान करती है।

इस चर्चा में हम जानेंगे कि कैसे अपरा और परा दोनों मिलकर सृष्टि को बनाए रखते हैं, और क्यों परा प्रकृति की ओर उन्मुख होना हमें भौतिक बंधनों से मुक्त कर मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।

यह एपिसोड केवल दार्शनिक व्याख्या ही नहीं, बल्कि आधुनिक जीवन में संतुलन और आध्यात्मिक दृष्टि को विकसित करने का मार्ग भी प्रस्तुत करता है।

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इस चर्चा के आधार को विस्तार से समझने के लिये आप यह सुन सकते हैं- ⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠"अध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग" (Auidiobook)⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠

इसे पढ़ना चाहे तो आप इस सीरिज के ईपुस्तकें पढ़ सकते हैं-⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠"आध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग"⁠⁠⁠⁠⁠⁠

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