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अविज्ञात सखा पुरञ्जन जीव को उपदेश

अविज्ञात सखा पुरञ्जन जीव को उपदेश

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यह एपिशोड़ राजा पुरञ्जन के आख्यान का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करता है, जो जीव (आत्मा) और उसके अज्ञात मित्र परमात्मा के बीच के संबंध को दर्शाता है। यह कहानी एक रूपक के रूप में कार्य करती है, जहाँ राजा पुरञ्जन जीव का प्रतिनिधित्व करता है और उसका मित्र अविज्ञात परमात्मा का प्रतीक है। कहानी में एक नौ दरवाजों वाली नगरी (शरीर), एक सुंदरी (बुद्धि), ग्यारह योद्धा (इंद्रियां और मन), और पाँच सिर वाला सर्प (प्राण वायु) जैसे तत्व हैं, जो जीव के लौकिक जीवन और माया में आसक्ति को दर्शाते हैं। ग्रंथ इस बात पर जोर देता है कि मृत्यु के समय व्यक्ति जिस चीज से आसक्त होता है, उसी रूप को प्राप्त होता है, और यह भी कि परमात्मा को जानने के लिए जीव को अपने नाम और रूप का त्याग कर परमात्मा में विलीन होना पड़ता है, क्योंकि परमात्मा अविज्ञात है और उसे केवल वही जान सकता है जो स्वयं वही हो। अंततः, यह कथा आत्मज्ञान और जीव के कल्याण के लिए परमात्मा के उपदेशों को स्पष्ट करती है।

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