Page de couverture de एपिसोड 7: जीव और जगत की प्रकृति - जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि

एपिसोड 7: जीव और जगत की प्रकृति - जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि

एपिसोड 7: जीव और जगत की प्रकृति - जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि

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जैसी हमारी आंतरिक भावना (वृत्ति) होती है, वैसी ही हमें बाहरी दुनिया की प्रतीति होती है । इस एपिसोड में हम जानेंगे कि जिनका चित्त शांत हो चुका है, उनके लिए भीड़ भरा नगर भी सुनसान जंगल जैसा लगता है । वहीं जिनका मन तृष्णा की ज्वाला से संतप्त है, उनके लिए सारा जगत जलता हुआ प्रतीत होता है । वास्तव में, पूरा जगत आत्मतत्व से ही परिपूर्ण है ।

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