Page de couverture de कलाकार की दृष्टि II Nietzsche दर्शन

कलाकार की दृष्टि II Nietzsche दर्शन

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प्रिय श्रोता गण, Nietzsche दर्शन के सातवें अंक में आपका स्वागत है. हम पहुंच चुके हैं twilight of the idols के chapter 7 तक. तो आइये बिना देर किए शुरू करते हैं. आज की चर्चा का विषय है, कलाकारों की दृष्टि- 1.   किसी चीज को, या किसी आदमी को कैसे देखा जाए? आज कल pulp psychologists की भरमार है.  हर कोई अपने आप को छोटा-मोटा मनोवैज्ञानिक समझ रहा है, psychology के tricks लगा रहा है. मैं कहता हूं की देखने की असली कला है देखने की कोशिश न करना. जब हम कुछ देखने, जानने- बूझने के लिए देखते हैं तो हमारी दृष्टि वही दिखलाती है जो हम पहले से जानते हैं. हमारी चेतना और स्मृति यथार्थ को बदल देती है, चीजों का परिवर्तित अलंकृत रूप हमारे सामने प्रस्तुत करती है. किसी experience को लेने की कोशिश उसे बर्बाद करने का सबसे पक्का तरीका है. खुद को कुछ experience करते देखने की कोशिश उस अनुभव का सर्वनाश कर देती है. Experience करने की लालसा अच्छी चीज़ों को भी विषाक्त कर देती है. स्वभाविक मनोवैज्ञानिक और कलाकार बिना कोशिश, effortlessly देखने की कला में माहिर होते हैं. ये यक़ीनन एक कला ही है जिसे अधिकांश लोग नहीं समझते. Effortlessly किसी चीज का अनुभव करना. 2.   अव्वल दर्जे के कलाकार प्रकृति को छापने या उसका अनुसरण करने की कोशिश नहीं करते. अच्छे कलाकार प्रकृति के खुद तक आने का इंतज़ार करते हैं. अनुभव ढूंढने के बजाय, उसके खुद तक पहुंचने की प्रतीक्षा करते हैं. कलाकार की प्रेरणा अपने आप को उसके सामने प्रस्तुत करती है. जतन से प्रेरणा बनाने की कोशिश परिपक्व कलाकार नहीं करते. नौसिखिए कलाकार नायाब और अजीब चीज़ों की तलाश में रहते हैं, चाहते हैं की प्रकृति से ढूंढ़ कर कोई ऐसी चीज निकालें जो पहले किसी ने न देखी हो, या फिर बहुत कम लोगों ने देखी हो. तभी इनकी कलाकृतियों का संग्रह किसी musuem अजायबघर की तरह लगता है- भानुमति का पिटारा- विचित्र चीज़ों का जमावड़ा. कचरा बीनने वाले भी ऐसे ही काम करते हैं-  रद्दी के ढेर में काम की चीज़ें तलाशते हैं. मैं इसे कला नहीं मानता. 3.   असली कलाकार के लिए कुछ रद्दी नहीं. क्योंकि नैसर्गिक कलाकार प्रकृति से बंधा नहीं होता. उसे अनुसरण करने, या photocopy उत्पादित करने में रुचि नहीं. ऐसे प्रकृति के सामने नतमस्तक कलाकार मुझे कमज़ोर, थके भाग्यवादी किस्म के लोग लगते हैं. हमारा कलाकार प्रकृति को मनचाहे तरीके के सजाता है, उसमें अपने मनभावन रंग भरता है; उसकी ...

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