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तिरुमूलर नायनार — करुणा और योग सिद्धि के अमर संत

तिरुमूलर नायनार — करुणा और योग सिद्धि के अमर संत

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भारतीय संत परंपरा में तिरुमूलर नायनार का नाम एक अनोखी आध्यात्मिक गाथा के साथ जुड़ा हुआ है। वे केवल एक महान योगी और सिद्धपुरुष ही नहीं थे, बल्कि करुणा, भक्ति और योगबल के अद्वितीय संगम का जीवंत उदाहरण भी हैं। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्चा योग केवल साधना में नहीं, बल्कि दूसरों के दुःख को अपना समझने में निहित है।तिरुमूलर नायनार मूल रूप से कैलास में स्थित महान योगियों के समुदाय का हिस्सा थे। भगवान शिव के वाहन नंदी के आशीर्वाद से उन्होंने अष्ट सिद्धियाँ — अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व — प्राप्त कर ली थीं। इन सिद्धियों के बावजूद उनका जीवन अत्यंत सरल और विनम्र था।किंवदंती है कि नंदी के आदेश पर उन्होंने कैलास से भारत के दक्षिणी भूभाग की यात्रा की, ताकि वे योग और शिवभक्ति का संदेश फैला सकें।एक दिन, जब वे तिरुवाडुतुरै के पास पहुँचे, उन्होंने देखा कि एक ग्वाला अचानक मृत्यु को प्राप्त हो गया है। उसके आसपास की गायें बिलख रही थीं और भयभीत होकर इधर-उधर भटक रही थीं। इस दृश्य ने तिरुमूलर नायनार के हृदय को गहरे तक छू लिया।अपने योगबल से उन्होंने परकाया प्रवेश की सिद्धि का उपयोग किया — अर्थात्, उन्होंने उस मृत ग्वाले के शरीर में प्रवेश किया, ताकि गायों की देखभाल कर सकें। इस समय उनका अपना मूल शरीर पास ही सुरक्षित रखा गया था।जब वे अपने मूल शरीर में लौटने के लिए आए, तो पाया कि वह अदृश्य हो चुका है। यह एक गूढ़ रहस्य था, जिसे उन्होंने भगवान शिव की इच्छा मानकर स्वीकार कर लिया। उन्होंने यह समझा कि अब उनका जीवन इस ग्वाले के रूप में ही आगे बढ़ना है।इसके बाद तिरुमूलर नायनार ने उस ग्वाले के रूप में ही तप, साधना और समाज सेवा जारी रखी।अपने साधना काल में उन्होंने एक महाग्रंथ की रचना की, जिसे ‘तिरुमन्तिरम्’ कहा जाता है। यह ग्रंथ तमिल भाषा में रचा गया और इसमें वेदों, उपनिषदों, योगशास्त्र और शिवभक्ति का सार समाहित है।इस ग्रंथ की विशेषताएँ —इसमें 3000 पद हैं (किंवदंती में कभी-कभी इसे तीन सौ कहा जाता है, लेकिन वास्तव में यह तीन हजार से अधिक हैं)।इसमें योग के आठ अंग, भक्ति के मार्ग और आत्मा-परमात्मा के मिलन की व्याख्या है।यह केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि सामाजिक नैतिकता, स्वास्थ्य, ध्यान और ...
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