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तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ

तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ

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जैन धर्म की गौरवशाली परंपरा में 24 तीर्थंकरों का उल्लेख मिलता है, जिनमें तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जीवन अत्यंत प्रेरणादायी और शिक्षाप्रद माना जाता है। इस एपिसोड में हम उनके जीवन, तपस्या, शिक्षाओं और उनके द्वारा दिए गए आध्यात्मिक मार्गदर्शन पर विस्तार से चर्चा करेंगे।पार्श्वनाथ का जन्म लगभग 877 ईसा पूर्व वाराणसी में हुआ था। उनके पिता अश्वसेन वाराणसी के राजा थे और माता का नाम वामा देवी था। बचपन से ही उनमें करुणा, दया और सत्य के प्रति गहरा झुकाव था। वे सांसारिक ऐश्वर्य से घिरे होने के बावजूद साधारण जीवन की ओर आकर्षित रहते थे।किशोरावस्था में ही पार्श्वनाथ ने देखा कि भौतिक सुख-सुविधाएं क्षणभंगुर हैं। वे जीव हिंसा से बचने, संयमित जीवन जीने और सत्य की खोज करने लगे। एक कथा के अनुसार उन्होंने एक बार देखा कि एक साधु अग्निहोत्र कर रहा है और उसमें जीवित सर्प को जलाने की तैयारी है। उन्होंने करुणा और विवेक से सर्प को बचा लिया। यह घटना उनके भीतर अहिंसा और दया के बीज को और गहरा कर गई।युवा अवस्था में ही उन्होंने यह निश्चय किया कि सांसारिक सुख और राजमहल की विलासिता आत्मज्ञान की राह में बाधक हैं। इसलिए 30 वर्ष की आयु में उन्होंने गृहत्याग कर दीक्षा ली।वे गहन ध्यान और कठोर तपस्या में लीन हो गए। उन्होंने सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह और आत्मसंयम को अपना जीवन मंत्र बना लिया।✨ जन्म और प्रारंभिक जीवन🌱 बाल्यावस्था का आध्यात्मिक झुकाव🕉️ गृहत्याग और दीक्षा🔥 तपस्या और सर्वज्ञता की प्राप्ति तपस्या और सर्वज्ञता की प्राप्तिकठोर साधना और ध्यान के वर्षों बाद उन्हें सर्वज्ञत्व की प्राप्ति हुई। इस अवस्था में उन्होंने जीवन और ब्रह्मांड के रहस्यों को जाना और आत्मा की अनंत शक्ति का अनुभव किया। उनकी शिक्षाओं का सार यही था कि आत्मा शुद्ध, अमर और मुक्त है, केवल मोह और कर्म बंधन उसे संसार में बांधते हैं।पार्श्वनाथ ने अपने जीवन में अहिंसा, सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह को प्रमुख सिद्धांत के रूप में प्रचारित किया।उनकी चार मुख्य प्रतिज्ञाएँ इस प्रकार थीं—अहिंसा (किसी जीव को न मारना)सत्य (सत्य बोलना)अस्तेय (चोरी न करना)अपरिग्रह (अत्यधिक संग्रह न करना)इन सिद्धांतों को उन्होंने समाज में फैलाया और असंख्य लोगों को आध्यात्मिक पथ पर ...
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