
ध्यानयोग का परिचय और महत्व
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गीता के 18 योग: अध्यात्मिक प्रबोधन की श्रवण यात्रा पॉडकास्ट की इस 11वीं कड़ी में प्रस्तुत है भगवद्गीता के छठे अध्याय – ध्यानयोग का सार।
इस एपिसोड में श्रोता जानेंगे कि ध्यानयोग केवल मौन ध्यान नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार और गहन मानसिक शांति प्राप्त करने का सशक्त साधन है। इसमें बताया गया है कि सच्चा योगी या संन्यासी वह नहीं जो केवल बाहरी संसार का त्याग करता है, बल्कि वह है जो कर्तव्यों का निस्वार्थ भाव से पालन करता है, बिना फल की आसक्ति के।
एक प्रेरक लघुकथा के माध्यम से यह समझाया गया है कि संसार में रहते हुए भी निस्वार्थ कर्म और ईश्वर को समर्पण ही मोक्ष का सच्चा मार्ग है। अंततः, यह अध्याय सिखाता है कि मन, इंद्रियों और आत्मा के संतुलन के बिना न तो ध्यान संभव है और न ही शांति।
✨ यह कड़ी हर उस साधक के लिए है जो आधुनिक जीवन की व्यस्तताओं के बीच भी ध्यान, शांति और आत्म-ज्ञान की तलाश में है।
🪷 टैगलाइन:
"ध्यान ही वह सेतु है, जो मनुष्य को आत्मा से और आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है।"
यदि आप जीवन में स्थिरता, आत्मबल और गहराई से जीने का मार्ग खोज रहे हैं—तो यह श्रृंखला आपके लिए है।
इस चर्चा के आधार को विस्तार से समझने के लिये आप यह सुन सकते हैं- "अध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग" (Auidiobook)इसे पढ़ना चाहे तो आप इस सीरिज के ईपुस्तकें पढ़ सकते हैं-"आध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग"
📌 हैशटैग्स:
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