
ध्यानयोग: नियम और अभ्यास
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यह कड़ी भगवद्गीता के छठे अध्याय में वर्णित ध्यानयोग के नियमों और अभ्यासों की व्याख्या करता है। यह शांति, आत्मज्ञान, और स्थिरता प्राप्त करने के लिए सही वातावरण, आसन, और शारीरिक-मानसिक तैयारी के महत्व पर जोर देता है। कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेशों के माध्यम से, पाठ इंद्रियों पर नियंत्रण, शरीर की स्थिरता, और नियमित अभ्यास को ध्यान की सफलता के लिए आवश्यक बताता है। इसमें मन को शांत करने और धैर्य के साथ आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ने की प्रक्रिया का भी वर्णन किया गया है। एक दृष्टांत कथा के माध्यम से संयम और नियमितता का महत्व स्पष्ट किया गया है, जो ध्यान के माध्यम से स्थिर मन और आत्म-शांति की प्राप्ति पर केंद्रित है।
यदि आप जीवन में स्थिरता, आत्मबल और गहराई से जीने का मार्ग खोज रहे हैं—तो यह श्रृंखला आपके लिए है।
इस चर्चा के आधार को विस्तार से समझने के लिये आप यह सुन सकते हैं- "अध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग" (Auidiobook)
इसे पढ़ना चाहे तो आप इस सीरिज के ईपुस्तकें पढ़ सकते हैं-"आध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग"
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