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ध्यानयोग: विधि और अनुशासन

ध्यानयोग: विधि और अनुशासन

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यह अंश ध्यानयोग: विधि और अनुशासन नामक एक पुस्तक श्रृंखला से लिया गया है, जो गीता के 18 योग के सातवें खंड का अध्याय 4 है। यह खंड ध्यानयोग के अभ्यास के लिए आवश्यक सिद्धांतों और विधियों पर केंद्रित है, जिसमें सही आसन और शारीरिक स्थिति का महत्व, जैसे कुशा, मृगचर्म और वस्त्र का उपयोग करते हुए स्थिर आसन बनाना, शामिल है। स्रोत मन को स्थिर करने और आत्म-शुद्धि प्राप्त करने पर भी बल देता है, जहाँ साधक को अपने शरीर, गर्दन और सिर को सीधा रखते हुए अपनी दृष्टि को नाक के अग्रभाग पर केंद्रित करने का निर्देश दिया जाता है ताकि मन को भगवान के स्वरूप में लीन किया जा सके। इसके अतिरिक्त, यह अनुशासन और नियमितता पर जोर देता है, जिसमें संतुलित आहार और नींद बनाए रखने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। इन सिद्धांतों का पालन करने से आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है।

इस चर्चा के आधार को विस्तार से समझने के लिये आप यह सुन सकते हैं- ⁠⁠⁠⁠"अध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग" (Auidiobook)⁠⁠⁠⁠

इसे पढ़ना चाहे तो आप इस सीरिज के ईपुस्तकें पढ़ सकते हैं-⁠⁠⁠⁠"आध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग"⁠⁠⁠


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