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पैगम्बर जरथुश्त्र: जीवन और शिक्षाएँ

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“संत चरित्रावली” के इस सातवें एपिसोड में हम आपको प्राचीन ईरान के महान पैगम्बर और आध्यात्मिक मार्गदर्शक जरथुश्त्र (Zoroaster) के अद्भुत जीवन, शिक्षाओं और उनके धर्म जरथुश्त्रमत (ज़ोरोएस्ट्रियनिज़्म) की महिमा से परिचित कराएंगे। यह कथा केवल एक धार्मिक आचार्य की जीवनी नहीं, बल्कि मानवता के नैतिक उत्थान की अमर गाथा है।जरथुश्त्र का जन्म लगभग 1800–1200 ईसा पूर्व ईरान के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में हुआ माना जाता है। उनके पिता का नाम पौरुषस्प और माता का नाम दुग्धोवा था। बचपन से ही वे अद्भुत तेजस्वी, करुणाशील और सत्य के खोजी थे।परंपरा के अनुसार, उनके जन्म के समय ही अनेक अलौकिक संकेत प्रकट हुए, जो उनके भविष्य में महान पैगम्बर बनने का द्योतक थे।युवा अवस्था में ही जरथुश्त्र ने सांसारिक मोह को त्यागकर सत्य और परमात्मा की खोज में तपस्या और ध्यान आरंभ किया। इसी साधना के दौरान उन्हें अहुरमज़दा (सर्वोच्च ईश्वर) का साक्षात्कार हुआ।उन्होंने अहुरमज़दा और छह पवित्र अमर आत्माओं (Amesha Spentas) से संवाद किया, जिनसे उन्होंने धर्म, सत्य, न्याय और प्रकाश के सिद्धांत सीखे।जरथुश्त्र के जीवन का एक महत्वपूर्ण अध्याय उनका अंग्रह मैन्‍यु (Angra Mainyu) यानी दुष्ट आत्मा के साथ संघर्ष है। उन्होंने अपने दृढ़ विश्वास और दिव्य ज्ञान से न केवल इन दुष्ट शक्तियों को परास्त किया, बल्कि लोगों को अंधविश्वास, हिंसा और झूठ से दूर रहने का संदेश दिया।जरथुश्त्र ने अपने धर्म के मूल सिद्धांत—अच्छे विचार, अच्छे शब्द और अच्छे कर्म (Good Thoughts, Good Words, Good Deeds)—को जन-जन तक पहुंचाने के लिए अनेक यात्राएँ कीं।कहा जाता है कि उन्होंने भारत और चीन तक यात्रा की और वहां भी लोगों को नैतिकता, पर्यावरण संरक्षण और सत्यनिष्ठा का संदेश दिया।उनकी शिक्षाओं ने ईरान के सम्राट विशतास्प को भी प्रभावित किया। जब विशतास्प ने जरथुश्त्र के धर्म को स्वीकार किया, तो इसका विरोध करने वाले राज्यों के साथ दो बड़े युद्ध हुए। इन संघर्षों में अंततः सत्य और न्याय की विजय हुई।जरथुश्त्र के जीवन में अनेक चमत्कार जुड़े हैं—बीमारों को ठीक करना, सूखी धरती पर वर्षा लाना, और हिंसक लोगों के हृदय को करुणा से भर देना।किंवदंती है कि अपने 77वें वर्ष में, एक आक्रमण के दौरान, मंदिर में प्रार्थना करते हुए उनका देहावसान हुआ। ...
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