
माया और तीन गुणों (सत्त्व, रज, तम) का महत्व
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श्रीमद्भगवद्गीता के सातवें अध्याय पर आधारित इस कड़ी में हम जीवन के सबसे गहन सत्य की खोज करते हैं।
यहाँ हम समझते हैं कि किस प्रकार ईश्वर की शक्ति ‘माया’ मनुष्य को भौतिक जगत के बंधनों में उलझाकर वास्तविक सत्य से दूर रखती है।
साथ ही, हम प्रकृति के तीन गुणों—
सत्त्व: शुद्धता और ज्ञान की ओर मार्गदर्शन,
रजस: क्रियाशीलता और बंधन का कारण,
तमस: अज्ञान और आलस्य की जड़—
का गहराई से विश्लेषण करेंगे।
अंततः, यह पाठ स्पष्ट करता है कि मोक्ष का मार्ग केवल ईश्वर की शरण में जाकर ही संभव है, जहाँ मनुष्य इन गुणों और माया के प्रभाव से मुक्त होकर आत्मिक स्वतंत्रता (मुक्ति) प्राप्त कर सकता है।
यह एपिसोड आपको माया के रहस्य, जीवन के गुणधर्म और मोक्ष की राह की गहन समझ देगा।
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इस चर्चा के आधार को विस्तार से समझने के लिये आप यह सुन सकते हैं- "अध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग" (Auidiobook)
इसे पढ़ना चाहे तो आप इस सीरिज के ईपुस्तकें पढ़ सकते हैं-"आध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग"
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