
JANAK PUTRIYON KI VIDAI
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राम-सीता, भरत-माण्डवी, लक्ष्मण-उर्मिला और शत्रुघ्न-श्रुतकीर्ति के विवाह संस्कार सम्पन्न होते हैं। चारों नवविवाहित जोड़े पिता दशरथ और गुरु वशिष्ठ से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। बेटी की विदाई के भावुक क्षणों में रानी सुनयना अपनी वेदना व्यक्त करती हैं, वहीं राजा जनक भी अपनी भावनाओं को प्रकट करते हुए दशरथ से बारात को कुछ दिन मिथिला में रोकने का आग्रह करते हैं। दशरथ सहर्ष स्वीकार करते हैं। अयोध्या में तीनों रानियाँ बारात की प्रतीक्षा कर रही होती हैं। कैकेयी का मानना है कि दशरथ को जनक से विदाई की पहल करनी चाहिए। उधर, सुमंत भी यही सुझाव देते हैं, पर दशरथ जनक के भावों को समझते हैं। अंततः ऋषि विश्वामित्र और शतानन्द के समझाने पर जनक बेटियों की विदाई के लिए तैयार होते हैं। रानी सुनयना चारों पुत्रियों को ससुराल धर्म, सेवा और मर्यादा की सीख देती हैं। राम अपने भाइयों के साथ विदाई के लिए रनिवास पहुँचते हैं। जनक अत्यंत भावुक होकर दशरथ से बेटियों की भूल-चूक क्षमा करने की विनती करते हैं। दशरथ आश्वस्त करते हैं कि सीता अयोध्या की भावी महारानी हैं और उन्हें पूर्ण सम्मान मिलेगा। विदाई के समय जनक सीता को मायके की मर्यादा बनाए रखने का उपदेश देते हैं। अयोध्या में बारात का भव्य स्वागत होता है। गुरु वशिष्ठ कुलदेवता सूर्य की पूजा कराते हैं। रानियाँ बहुओं के साथ दूध-भात की रस्म निभाती हैं। राम सीता को दूध के पात्र से कंगन ढूँढने की रस्म में जीतने देते हैं। भाइयों में हास्य-व्यंग्य और चुहल का वातावरण बनता है। प्रथम मिलन की रात्रि राम सीता को एक अनुपम उपहार देते हुए कहते हैं कि राजकुल में बहुविवाह की परंपरा होने के बावजूद एक पत्नी व्रत वतन निभाएंगे। वही दूसरी ओर राजा दशरथ भी कौशल्या से बहुओं के साथ पुत्री सा प्रेम करने के लिए कहते है।