
SHRI RAM SITA VIVAH
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राजा दशरथ ऋषियों, मुनियों, मंत्रियों और समस्त प्रजाजनों को भरत और शत्रुघ्न के माध्यम से बारात में मिथिला साथ चलने के लिए आमंत्रित करते हैं। कौशल्या के आदेश पर आर्य सुमंत याचकों को राजकोष से दान वितरित करते है। मिथिला पहुँचने पर अयोध्या से आई हुए बारात का राजा जनक भव्य स्वागत करते हैं, लेकिन उनमें कन्या के पिता होने का विनम्र भाव था, वहीं दशरथ भी स्वयं को याची कहकर विनयशीलता दर्शाते हैं। राम गुरु विश्वामित्र की आज्ञा के बिना पिता से नहीं मिलते, जिससे उनके संस्कारों का परिचय मिलता है। बाद में विश्वामित्र उन्हें दशरथ से मिलाने ले जाते हैं। रात में राम पिता की सेवा करते हैं, जिससे दशरथ को अपने योग्य पुत्र पर गर्व होता है। लक्ष्मण, पुष्पवाटिका में राम-सीता के प्रथम मिलन की कथा भरत और शत्रुघ्न को उत्साहपूर्वक सुनाते हैं। अगले दिन राजसभा में महर्षि शतानन्द राजा जनक की कुल परंपरा का वर्णन करते हुए राम-सीता तथा लक्ष्मण-उर्मिला के विवाह का प्रस्ताव रखते हैं, जिसे जनक सहर्ष स्वीकार करते हैं और जब वह भरत और शत्रुघ्न के साथ जनक के भाई कुशध्वज की पुत्रियों माण्डवी और श्रुतकीर्ति के विवाह का प्रस्ताव रखते है, जो उसे भी दशरथ सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं। यह शुभ समाचार सीता व उनकी बहनों को सखियाँ देती हैं और वही दूसरी तरफ अयोध्या में भी यह समाचार मिलने पर तीनों रानियाँ अति प्रसन्न होती हैं, परंतु मंथरा की कुटिल बुद्धि सक्रिय हो जाती है। वह कैकेयी को भरत के स्वागत हेतु विशेष व्यवस्था करने का सुझाव देती है और कैकेयी को उसके पिता अश्वपति को संदेश भेजने को कहती है। शुभ मुहूर्त के समय विवाह मण्डप में चारों राजकुमार पहुँचते है, मंगल गीतों और मंत्रोच्चार के साथ सर्वप्रथम श्री राम और सीता जी की वैवाहिक रस्में पूरी की जाती है, देवतागण भी मानव रूप में इस शुभ अवसर के साक्षी बनते हैं। राजा जनक राम के चरण पखारते हुए सीता का कन्यादान कर विवाह सम्पन्न कराते है।