
SITA SWAYAMVAR
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गुरु विश्वामित्र की आज्ञा पर श्री राम सहज भाव से शिव धनुष को उठाते हैं और जैसे ही वह उस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए डोरी खींचते हैं, धनुष को दो टुकड़े हो जाते है। राजा जनक की प्रतिज्ञा पूर्ण होती है और उनके साथ महारानी सुनयना भी भावविभोर हो उठती हैं। अपना मनचाहा वर पाकर मन-ही-मन अति प्रसन्न सीता श्री राम को वरमाला पहना देती हैं। तभी शिव धनुष के टूटने पर ध्वनि सुनकर क्रोधित हुए परशुराम सभा में पहुँच जाते हैं और धनुष तोड़ने वाले को दंड देने की घोषणा करते हैं। सभा में उपस्थित सभी भयभीत हो जाते है। राम संकेतों में स्वीकार करते हैं कि धनुष उन्होंने ही तोड़ा है। लक्ष्मण और परशुराम के बीच तीखा संवाद होता है, राम लक्ष्मण को शांत कराते है। विश्वामित्र और जनक भी परशुराम को समझाने का प्रयास करते हैं। राम अपने गूढ़ वचनों से परशुराम को अपने दिव्य स्वरूप का आभास कराते हैं। परशुराम अपना संशय दूर करने के लिए श्री राम को भगवान विष्णु का दिया दिव्य धनुष सौंपते हैं। राम उस पर अमोघ बाण चढ़ाकर पूछते हैं कि इससे वह उनकी कौन सी शक्ति का विनाश करें। तब परशुराम समझ जाते हैं कि राम स्वयं विष्णु हैं और बाण पूर्व दिशा में छोड़ने का अनुरोध करते हैं, ताकि उनका अहंकार और कीर्ति शांत हो जाए। परशुराम राम को आशीर्वाद देकर वहाँ से चले जाते है। राजा जनक विश्वामित्र की सलाह पर राम-सीता विवाह हेतु महाराज दशरथ को बारात सहित आमंत्रित करने के लिए दूत देवव्रत को अयोध्या भेजते है। अयोध्या में भरत और शत्रुघ्न कौतूहल जागृत करते हुए राजा दशरथ और अपनी माताओं के राजा जनक का संदेश सुनाते है। संदेशा लेकर आए हुए देवव्रत को राजा दशरथ गुरु वशिष्ठ से मंत्रणा कर स्वीकृति प्रदान कर देते है और उन्हें उपहार प्रदान करना चाहते है, लेकिन देवव्रत बेटी की ससुराल से कोई भी उपहार लेने से मना कर देता है।