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एकादशोपनिषद प्रसाद

एकादशोपनिषद प्रसाद

Auteur(s): रमेश चौहान
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“एकादशोपनिषद प्रसाद” श्रृंखला 11 प्राचीनतम और महत्वपूर्ण उपनिषदों के गहन ज्ञान को सरल और सुलभ भाषा में प्रस्तुत करने का एक प्रयास है। इस श्रृंखला का उद्देश्य इन उपनिषदों के गूढ़ दार्शनिक विचारों को समझने और आत्मसात करने में पाठकों की सहायता करने का है। "प्रसाद" शब्द इन उपनिषदों के ज्ञान को दिव्य आशीर्वाद स्वरूप प्रस्तुत करने का संकेत देता है। यह ज्ञान आत्मज्ञान, मोक्ष और जीवन के गहरे रहस्यों की दिशा में एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है।रमेश चौहान Spiritualité
Épisodes
  • अज्ञान, आत्मघात और अंधकारमय लोक
    Aug 27 2025

    यह कड़ी ईशावास्योपनिषद् के तीसरे श्लोक की व्याख्या करता है, जिसमें अज्ञान और आत्मघात के परिणामों पर चर्चा की गई है। इसमें बताया गया है कि अज्ञान से घिरे लोग जो अपनी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को नहीं पहचानते, अंधकारमय लोकों में पहुँचते हैं'आत्महनः' का अर्थ यहाँ शारीरिक मृत्यु नहीं, बल्कि आत्मज्ञान से विमुख होकर अज्ञान और भौतिकता में फँसना है। लेख में भगवद गीता के संबंधित श्लोकों से तुलना करके इस विचार को पुष्ट किया गया है, जो अज्ञान को विनाशकारी और आत्मज्ञान को मोक्षदायक बताते हैं। कुल मिलाकर, यह स्रोत आत्मज्ञान के महत्व और अज्ञान के खतरों पर प्रकाश डालता है।

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    14 min
  • कर्मयोग: मोक्ष का मार्ग
    Aug 20 2025

    "एकादशोपनिषद प्रसाद" की इस चौथी कड़ी में हम प्रवेश करते हैं ईशावास्योपनिषद प्रसाद के द्वितीय श्लोक में।
    यह श्लोक कर्म और जीवन-यात्रा की दिशा को स्पष्ट करता है।

    श्लोक कहता है कि मनुष्य को सौ वर्षों तक कर्म करते हुए जीना चाहिए, क्योंकि ऐसा जीवन ही मोक्ष की ओर ले जाने वाला है। यहाँ "कर्म" का अर्थ केवल भौतिक क्रियाओं से नहीं, बल्कि कर्तव्य, धर्म और समर्पित साधना से है।

    इस एपिसोड में हम विस्तार से चर्चा करेंगे—ईशावास्योपनिषद के दूसरे श्लोक का मूल पाठ और भावार्थ

    • कर्मयोग की व्याख्या : कर्म से भागना नहीं, कर्म में ही आत्मा का प्रकाश खोजना

    • जीवन में कर्म और त्याग का संतुलन

    • यह श्लोक आधुनिक जीवन में कैसे मार्गदर्शक हो सकता है

    • उपनिषद का यह सन्देश कि मोक्ष कर्म का त्याग नहीं, बल्कि कर्म का शुद्धीकरण है।

    एपिसोड का सार:
    ईश्वर सर्वत्र है, और जब मनुष्य अपने कर्मों को ईश्वरार्पण भाव से करता है, तो वह जीवन के बंधनों से मुक्त होकर आत्मा की परम शांति को प्राप्त करता है।

    इस प्रकार, ईशावास्योपनिषद हमें यह सिखाता है कि कर्म ही साधना है, कर्म ही पूजा है, और कर्म में ही मोक्ष का द्वार है।

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    6 min
  • ईशावास्योपनिषद्: त्याग और संतोष का सार
    Aug 16 2025

    एकादशोपनिषद् प्रसाद पॉडकास्ट शो की इस तीसरी कड़ी में, हम रमेश चौहान की एकादशोपनिषद् प्रसाद श्रृंखला के पहले प्रसाद ईशावास्योपनिषद् प्रसाद के अध्याय 2 में प्रवेश करते हैं। यह कड़ी ईशावास्योपनिषद् के प्रथम श्लोक की गहन व्याख्या प्रस्तुत करती है।

    इस श्लोक का मूल संदेश है – "ईश्वर की सर्वव्यापकता को समझो और भौतिक वस्तुओं का त्यागपूर्वक, संतोषपूर्वक उपभोग करो"। चर्चा में अद्वैत वेदांत की दृष्टि से यह स्पष्ट किया गया है कि जब हम संपूर्ण जगत को ईश्वरमय मानते हैं, तब लोभ और आसक्ति स्वतः समाप्त हो जाते हैं। यह कड़ी हमें सिखाती है कि त्याग और अनासक्ति केवल तपस्वियों के लिए नहीं, बल्कि आधुनिक जीवन जीने वाले हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है।

    यह एपिसोड हमारे दैनिक जीवन में त्याग, संतोष और आंतरिक शांति के मार्ग को खोजने का एक प्रेरक साधन है। सुनिए और महसूस कीजिए – कैसे ईशावास्योपनिषद् का यह छोटा-सा श्लोक अनंत आनंद का द्वार खोल देता है।

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