Épisodes

  • अज्ञान, आत्मघात और अंधकारमय लोक
    Aug 27 2025

    यह कड़ी ईशावास्योपनिषद् के तीसरे श्लोक की व्याख्या करता है, जिसमें अज्ञान और आत्मघात के परिणामों पर चर्चा की गई है। इसमें बताया गया है कि अज्ञान से घिरे लोग जो अपनी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को नहीं पहचानते, अंधकारमय लोकों में पहुँचते हैं'आत्महनः' का अर्थ यहाँ शारीरिक मृत्यु नहीं, बल्कि आत्मज्ञान से विमुख होकर अज्ञान और भौतिकता में फँसना है। लेख में भगवद गीता के संबंधित श्लोकों से तुलना करके इस विचार को पुष्ट किया गया है, जो अज्ञान को विनाशकारी और आत्मज्ञान को मोक्षदायक बताते हैं। कुल मिलाकर, यह स्रोत आत्मज्ञान के महत्व और अज्ञान के खतरों पर प्रकाश डालता है।

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  • कर्मयोग: मोक्ष का मार्ग
    Aug 20 2025

    "एकादशोपनिषद प्रसाद" की इस चौथी कड़ी में हम प्रवेश करते हैं ईशावास्योपनिषद प्रसाद के द्वितीय श्लोक में।
    यह श्लोक कर्म और जीवन-यात्रा की दिशा को स्पष्ट करता है।

    श्लोक कहता है कि मनुष्य को सौ वर्षों तक कर्म करते हुए जीना चाहिए, क्योंकि ऐसा जीवन ही मोक्ष की ओर ले जाने वाला है। यहाँ "कर्म" का अर्थ केवल भौतिक क्रियाओं से नहीं, बल्कि कर्तव्य, धर्म और समर्पित साधना से है।

    इस एपिसोड में हम विस्तार से चर्चा करेंगे—ईशावास्योपनिषद के दूसरे श्लोक का मूल पाठ और भावार्थ

    • कर्मयोग की व्याख्या : कर्म से भागना नहीं, कर्म में ही आत्मा का प्रकाश खोजना

    • जीवन में कर्म और त्याग का संतुलन

    • यह श्लोक आधुनिक जीवन में कैसे मार्गदर्शक हो सकता है

    • उपनिषद का यह सन्देश कि मोक्ष कर्म का त्याग नहीं, बल्कि कर्म का शुद्धीकरण है।

    एपिसोड का सार:
    ईश्वर सर्वत्र है, और जब मनुष्य अपने कर्मों को ईश्वरार्पण भाव से करता है, तो वह जीवन के बंधनों से मुक्त होकर आत्मा की परम शांति को प्राप्त करता है।

    इस प्रकार, ईशावास्योपनिषद हमें यह सिखाता है कि कर्म ही साधना है, कर्म ही पूजा है, और कर्म में ही मोक्ष का द्वार है।

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  • ईशावास्योपनिषद्: त्याग और संतोष का सार
    Aug 16 2025

    एकादशोपनिषद् प्रसाद पॉडकास्ट शो की इस तीसरी कड़ी में, हम रमेश चौहान की एकादशोपनिषद् प्रसाद श्रृंखला के पहले प्रसाद ईशावास्योपनिषद् प्रसाद के अध्याय 2 में प्रवेश करते हैं। यह कड़ी ईशावास्योपनिषद् के प्रथम श्लोक की गहन व्याख्या प्रस्तुत करती है।

    इस श्लोक का मूल संदेश है – "ईश्वर की सर्वव्यापकता को समझो और भौतिक वस्तुओं का त्यागपूर्वक, संतोषपूर्वक उपभोग करो"। चर्चा में अद्वैत वेदांत की दृष्टि से यह स्पष्ट किया गया है कि जब हम संपूर्ण जगत को ईश्वरमय मानते हैं, तब लोभ और आसक्ति स्वतः समाप्त हो जाते हैं। यह कड़ी हमें सिखाती है कि त्याग और अनासक्ति केवल तपस्वियों के लिए नहीं, बल्कि आधुनिक जीवन जीने वाले हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है।

    यह एपिसोड हमारे दैनिक जीवन में त्याग, संतोष और आंतरिक शांति के मार्ग को खोजने का एक प्रेरक साधन है। सुनिए और महसूस कीजिए – कैसे ईशावास्योपनिषद् का यह छोटा-सा श्लोक अनंत आनंद का द्वार खोल देता है।

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  • ईशावास्योपनिषद्: परिचय और उपयोगिता
    Aug 14 2025
    ईशावास्योपनिषद वेदों की अमूल्य धरोहरों में से एक है, जो जीवन के उद्देश्य, सत्य की खोज और आंतरिक पूर्णता का मार्ग बताती है। इस पॉडकास्ट एपिसोड में हम आपको एक आध्यात्मिक यात्रा पर ले चलेंगे, जहाँ शब्द केवल ध्वनि नहीं रह जाते, बल्कि एक गहरा अनुभव बन जाते हैं।यह उपनिषद अपनी संक्षिप्तता में अद्वितीय है — कुल 18 मंत्रों में ही यह सम्पूर्ण जीवन-दर्शन, धर्म, कर्म और मोक्ष का रहस्य समेट लेता है। इसमें न केवल परमात्मा और जीवात्मा के सम्बन्ध को समझाया गया है, बल्कि यह भी बताया गया है कि कैसे मनुष्य सांसारिक जीवन जीते हुए भी आत्मिक मुक्ति पा सकता है।🌱 मुख्य विषय-वस्तुईश्वर की सर्वव्यापकता – पहला ही मंत्र हमें यह शिक्षा देता है कि इस संसार में जो कुछ भी है, वह ईश्वर से आवृत है। यह भाव हमें लोभ, आसक्ति और अहंकार से मुक्त करता है।कर्म और त्याग का संतुलन – उपनिषद यह नहीं कहता कि संसार त्याग दो, बल्कि यह बताता है कि संसार में रहते हुए भी अपने कर्म को निःस्वार्थ भाव से करो।माया और सत्य का भेद – यह हमें दिखाता है कि इन्द्रियों से जो हम देखते हैं, वह अंतिम सत्य नहीं है; सत्य उससे परे है।मृत्यु और अमरत्व का रहस्य – यह जीवन और मृत्यु के चक्र को समझाते हुए हमें आत्मा की अमरता का बोध कराता है।ज्ञान और अज्ञान का द्वंद्व – उपनिषद स्पष्ट करता है कि केवल बाहरी ज्ञान ही पर्याप्त नहीं; आत्मज्ञान के बिना जीवन अधूरा है।एपिसोड में क्या मिलेगा?मंत्रों का संस्कृत पाठ और उनका सटीक अर्थ।सरल भाषा में दार्शनिक व्याख्या, ताकि यह गूढ़ ज्ञान हर श्रोता तक सहजता से पहुँचे।आधुनिक जीवन में इन शिक्षाओं को अपनाने के व्यावहारिक तरीके।जीवन में संतुलन, संतोष और समर्पण का महत्व।यह एपिसोड क्यों सुनना चाहिए?यदि आप जीवन के असली अर्थ की खोज में हैं, तो यह एपिसोड आपको गहरी दिशा देगा।यह आपको आत्मिक शांति के करीब ले जाएगा।आपको भोग और योग का संतुलित मार्ग सिखाएगा।आप जानेंगे कि सच्ची स्वतंत्रता, बाहरी दुनिया से नहीं, बल्कि मन के भीतर से आती है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से लाभमानसिक स्थिरता – चिंताओं और भय से मुक्ति।आसक्ति से विमुक्ति – जो भी है, उसमें संतोष पाना।कर्तव्य-पालन की प्रेरणा – अपने कर्म को श्रेष्ठता से करना।अहंकार का क्षय – खुद को ब्रह्मांड का ...
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  • एकादशोपनिषद प्रसाद श्रृंखला का परिचय
    Aug 13 2025
    "सर्वं खल्विदं ब्रह्म" — "यह सम्पूर्ण जगत ब्रह्म है।"छान्दोग्य उपनिषद का यह वाक्य केवल एक मंत्र नहीं, बल्कि वह आध्यात्मिक सत्य है जो हमारे अस्तित्व की गहराई को छूता है। इसी सत्य से आरंभ होती है हमारी एकादशोपनिषद प्रसाद यात्रा।एकादशोपनिषद प्रसाद एक अनोखी श्रृंखला है, जो 11 प्रमुख और प्राचीन उपनिषदों के दिव्य ज्ञान को आधुनिक श्रोताओं के लिए सरल, स्पष्ट और जीवन-प्रासंगिक तरीके से प्रस्तुत करती है। इन उपनिषदों में ब्रह्म, आत्मा, सृष्टि, कर्म, मोक्ष और आनंद जैसे जीवन के सबसे गहरे रहस्यों के उत्तर समाए हैं। सदियों से यह ज्ञान ऋषियों की वाणी में, शास्त्रों के पन्नों पर, और साधकों के ध्यान में संरक्षित रहा है। अब इसे "प्रसाद" के रूप में आपके हृदय तक पहुँचाना ही इस श्रृंखला का उद्देश्य है।इस पहले एपिसोड "श्रृंखला का परिचय" में लेखक व प्रस्तुतकर्ता रमेश चौहान श्रोताओं को बताते हैं कि यह श्रृंखला क्यों और कैसे बनी। वे समझाते हैं कि उपनिषद केवल संस्कृत के विद्वानों या आध्यात्मिक पंडितों के लिए नहीं हैं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए हैं जो जीवन का गूढ़ अर्थ और अपना वास्तविक स्वरूप जानना चाहता है।एपिसोड में 11 उपनिषदों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है—ईशावास्योपनिषद — संसार में रहकर भी त्याग और समर्पण की साधना।केनोपनिषद — "किसके द्वारा?" का उत्तर, जो हमें ब्रह्म-आत्मा के अद्वैत तक ले जाता है।काठकोपनिषद — यम और नचिकेता का संवाद, मृत्यु और अमरता का रहस्य।प्रश्नोपनिषद — छह महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के माध्यम से सृष्टि और प्राण का विज्ञान।मुण्डकोपनिषद — दो प्रकार का ज्ञान—अपरा (संसारिक) और परा (आध्यात्मिक)।माण्डूक्योपनिषद — ओंकार के चार आयाम और तुरीय अवस्था की पहचान।तैत्तिरीयोपनिषद — पाँच कोशों के माध्यम से आनंद की खोज।ऐतरेयोपनिषद — सृष्टि का उद्गम और ब्रह्म से आत्मा का संबंध।श्वेताश्वतरोपनिषद — भक्ति और ज्ञान का संतुलन।छान्दोग्योपनिषद — उपासना और आत्मज्ञान का समन्वय, "तत्त्वमसि" का संदेश।बृहदारण्यकोपनिषद — आत्मा, ब्रह्म और मोक्ष का व्यापक विवेचन।रमेश चौहान बताते हैं कि इस श्रृंखला की सबसे बड़ी विशेषता है —सरल और प्रवाहमय भाषा — जटिल शास्त्रीय श्लोक भी रोज़मर्रा की हिंदी में।आधुनिक संदर्भ — उपनिषद ...
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