Page de couverture de वशिष्ठ वाणी: आत्म-ज्ञान की अमृतधारा (संकलन: महाबीर प्रसाद शर्मा)

वशिष्ठ वाणी: आत्म-ज्ञान की अमृतधारा (संकलन: महाबीर प्रसाद शर्मा)

वशिष्ठ वाणी: आत्म-ज्ञान की अमृतधारा (संकलन: महाबीर प्रसाद शर्मा)

Auteur(s): Mahabir Prasad Sharma
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"वशिष्ठ वाणी: आत्म-ज्ञान की अमृतधारा" एक पॉडकास्ट शृंखला हैं। इस शृंखला में 14 उपाख्यान (एपिसोड) हैं, जो 'योगवासिष्ठ महारामायण' के गहन ज्ञान पर आधारित है। इस श्रृंखला में, हम ब्रह्मर्षि वशिष्ठ द्वारा श्री राम को दिए गए उन 108 अमूल्य सदुपदेशों की यात्रा पर निकलेंगे, जो हमें जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने में मदद करते हैं। हम कर्म, पुरुषार्थ, भाग्य, जीवन-मृत्यु, मन का स्वरुप, आत्मज्ञान और मोक्ष जैसे विषयों पर सरल और सहज भाषा में चर्चा करेंगे। इस पॉडकास्ट का उद्देश्य उस प्राचीन ज्ञान को आज के संदर्भ में प्रस्तुत करना है, ताकि श्रोता अपने जीवन को एक नई दिशा दे सकें और आंतरिक शांति की खोज कर सकें।Mahabir Prasad Sharma Hindouisme Spiritualité
Épisodes
  • एपिसोड 14: ज्ञान-यज्ञ का उपसंहार - मोक्ष के दो पंख
    Sep 5 2025

    हमारी यात्रा के इस अंतिम एपिसोड में, हम संपूर्ण शिक्षाओं का सार प्रस्तुत करेंगे। हम जानेंगे कि मोक्ष रूपी परम पद तक पहुँचने के लिए दो पंखों की आवश्यकता होती है, जैसे पक्षी को उड़ने के लिए । ये दो पंख हैं - सत्य का ज्ञान और व्यवहार में सदाचार (नैतिक आचरण) । इन दोनों का समान रूप से अभ्यास करने पर ही सिद्धि प्राप्त होती है, क्योंकि ज्ञान से सदाचार और सदाचार से ज्ञान परस्पर बढ़ते हैं ।

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    15 min
  • एपिसोड 13: जगत-प्रपंच - एक दीर्घ स्वप्न
    Sep 5 2025

    क्या यह जाग्रत अवस्था भी एक सपना है? इस एपिसोड में हम जानेंगे कि यह जगत कोई ठोस बाहरी वस्तु नहीं, बल्कि ब्रह्म का एक संकल्प या विचार मात्र है, ठीक एक लंबे सपने की तरह । जैसे जागने पर स्वप्न मिथ्या सिद्ध हो जाता है, उसी प्रकार आत्मज्ञान होने पर यह जाग्रत जगत भी एक लंबा स्वप्न ही प्रतीत होता है । वास्तव में, जिसकी जैसी दृढ़ भावना होती है, उसे वैसा ही अनुभव होता है ।

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    18 min
  • एपिसोड 12: जीवन्मुक्त - जीते-जी मुक्त
    Sep 5 2025

    क्या जीते-जी मुक्त होना संभव है? इस एपिसोड में हम जीवन्मुक्त पुरुष के लक्षणों का वर्णन करेंगे, जो संसार में रहते हुए भी उससे अछूता रहता है, जैसे पानी में कमल का पत्ता । वह सभी कर्म करता है, लेकिन कर्ता होने का अभिमान नहीं रखता । सुख-दुख, मान-अपमान में वह समभाव रहता है और उसका मन सदा आत्मा में स्थित रहता है ।

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    21 min
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