Page de couverture de Ramanand Sagar’s Ramayan Now As Podcast

Ramanand Sagar’s Ramayan Now As Podcast

Ramanand Sagar’s Ramayan Now As Podcast

Auteur(s): Tilak
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À propos de cet audio

Step into the timeless world of devotion and grandeur with this audio reimagining of Ramayan. Inspired by Ramanand Sagar’s cultural phenomenon, the podcast brings the epic alive through voice, music, and sound. Beginning with Baal Kaand—Rama’s divine birth, childhood, and sacred wedding—the journey moves into Ayodhya Kaand, capturing Kaikeyi’s demand, Rama’s exile, and Bharata’s devotion. Each episode offers not just a story, but an immersive spiritual experience filled with wisdom and divinity.Tilak Hindouisme Spiritualité
Épisodes
  • JANAK PUTRIYON KI VIDAI
    Sep 29 2025

    राम-सीता, भरत-माण्डवी, लक्ष्मण-उर्मिला और शत्रुघ्न-श्रुतकीर्ति के विवाह संस्कार सम्पन्न होते हैं। चारों नवविवाहित जोड़े पिता दशरथ और गुरु वशिष्ठ से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। बेटी की विदाई के भावुक क्षणों में रानी सुनयना अपनी वेदना व्यक्त करती हैं, वहीं राजा जनक भी अपनी भावनाओं को प्रकट करते हुए दशरथ से बारात को कुछ दिन मिथिला में रोकने का आग्रह करते हैं। दशरथ सहर्ष स्वीकार करते हैं। अयोध्या में तीनों रानियाँ बारात की प्रतीक्षा कर रही होती हैं। कैकेयी का मानना है कि दशरथ को जनक से विदाई की पहल करनी चाहिए। उधर, सुमंत भी यही सुझाव देते हैं, पर दशरथ जनक के भावों को समझते हैं। अंततः ऋषि विश्वामित्र और शतानन्द के समझाने पर जनक बेटियों की विदाई के लिए तैयार होते हैं। रानी सुनयना चारों पुत्रियों को ससुराल धर्म, सेवा और मर्यादा की सीख देती हैं। राम अपने भाइयों के साथ विदाई के लिए रनिवास पहुँचते हैं। जनक अत्यंत भावुक होकर दशरथ से बेटियों की भूल-चूक क्षमा करने की विनती करते हैं। दशरथ आश्वस्त करते हैं कि सीता अयोध्या की भावी महारानी हैं और उन्हें पूर्ण सम्मान मिलेगा। विदाई के समय जनक सीता को मायके की मर्यादा बनाए रखने का उपदेश देते हैं। अयोध्या में बारात का भव्य स्वागत होता है। गुरु वशिष्ठ कुलदेवता सूर्य की पूजा कराते हैं। रानियाँ बहुओं के साथ दूध-भात की रस्म निभाती हैं। राम सीता को दूध के पात्र से कंगन ढूँढने की रस्म में जीतने देते हैं। भाइयों में हास्य-व्यंग्य और चुहल का वातावरण बनता है। प्रथम मिलन की रात्रि राम सीता को एक अनुपम उपहार देते हुए कहते हैं कि राजकुल में बहुविवाह की परंपरा होने के बावजूद एक पत्नी व्रत वतन निभाएंगे। वही दूसरी ओर राजा दशरथ भी कौशल्या से बहुओं के साथ पुत्री सा प्रेम करने के लिए कहते है।

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    28 min
  • SHRI RAM SITA VIVAH
    Sep 26 2025

    राजा दशरथ ऋषियों, मुनियों, मंत्रियों और समस्त प्रजाजनों को भरत और शत्रुघ्न के माध्यम से बारात में मिथिला साथ चलने के लिए आमंत्रित करते हैं। कौशल्या के आदेश पर आर्य सुमंत याचकों को राजकोष से दान वितरित करते है। मिथिला पहुँचने पर अयोध्या से आई हुए बारात का राजा जनक भव्य स्वागत करते हैं, लेकिन उनमें कन्या के पिता होने का विनम्र भाव था, वहीं दशरथ भी स्वयं को याची कहकर विनयशीलता दर्शाते हैं। राम गुरु विश्वामित्र की आज्ञा के बिना पिता से नहीं मिलते, जिससे उनके संस्कारों का परिचय मिलता है। बाद में विश्वामित्र उन्हें दशरथ से मिलाने ले जाते हैं। रात में राम पिता की सेवा करते हैं, जिससे दशरथ को अपने योग्य पुत्र पर गर्व होता है। लक्ष्मण, पुष्पवाटिका में राम-सीता के प्रथम मिलन की कथा भरत और शत्रुघ्न को उत्साहपूर्वक सुनाते हैं। अगले दिन राजसभा में महर्षि शतानन्द राजा जनक की कुल परंपरा का वर्णन करते हुए राम-सीता तथा लक्ष्मण-उर्मिला के विवाह का प्रस्ताव रखते हैं, जिसे जनक सहर्ष स्वीकार करते हैं और जब वह भरत और शत्रुघ्न के साथ जनक के भाई कुशध्वज की पुत्रियों माण्डवी और श्रुतकीर्ति के विवाह का प्रस्ताव रखते है, जो उसे भी दशरथ सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं। यह शुभ समाचार सीता व उनकी बहनों को सखियाँ देती हैं और वही दूसरी तरफ अयोध्या में भी यह समाचार मिलने पर तीनों रानियाँ अति प्रसन्न होती हैं, परंतु मंथरा की कुटिल बुद्धि सक्रिय हो जाती है। वह कैकेयी को भरत के स्वागत हेतु विशेष व्यवस्था करने का सुझाव देती है और कैकेयी को उसके पिता अश्वपति को संदेश भेजने को कहती है। शुभ मुहूर्त के समय विवाह मण्डप में चारों राजकुमार पहुँचते है, मंगल गीतों और मंत्रोच्चार के साथ सर्वप्रथम श्री राम और सीता जी की वैवाहिक रस्में पूरी की जाती है, देवतागण भी मानव रूप में इस शुभ अवसर के साक्षी बनते हैं। राजा जनक राम के चरण पखारते हुए सीता का कन्यादान कर विवाह सम्पन्न कराते है।

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    28 min
  • SITA SWAYAMVAR
    Sep 24 2025

    गुरु विश्वामित्र की आज्ञा पर श्री राम सहज भाव से शिव धनुष को उठाते हैं और जैसे ही वह उस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए डोरी खींचते हैं, धनुष को दो टुकड़े हो जाते है। राजा जनक की प्रतिज्ञा पूर्ण होती है और उनके साथ महारानी सुनयना भी भावविभोर हो उठती हैं। अपना मनचाहा वर पाकर मन-ही-मन अति प्रसन्न सीता श्री राम को वरमाला पहना देती हैं। तभी शिव धनुष के टूटने पर ध्वनि सुनकर क्रोधित हुए परशुराम सभा में पहुँच जाते हैं और धनुष तोड़ने वाले को दंड देने की घोषणा करते हैं। सभा में उपस्थित सभी भयभीत हो जाते है। राम संकेतों में स्वीकार करते हैं कि धनुष उन्होंने ही तोड़ा है। लक्ष्मण और परशुराम के बीच तीखा संवाद होता है, राम लक्ष्मण को शांत कराते है। विश्वामित्र और जनक भी परशुराम को समझाने का प्रयास करते हैं। राम अपने गूढ़ वचनों से परशुराम को अपने दिव्य स्वरूप का आभास कराते हैं। परशुराम अपना संशय दूर करने के लिए श्री राम को भगवान विष्णु का दिया दिव्य धनुष सौंपते हैं। राम उस पर अमोघ बाण चढ़ाकर पूछते हैं कि इससे वह उनकी कौन सी शक्ति का विनाश करें। तब परशुराम समझ जाते हैं कि राम स्वयं विष्णु हैं और बाण पूर्व दिशा में छोड़ने का अनुरोध करते हैं, ताकि उनका अहंकार और कीर्ति शांत हो जाए। परशुराम राम को आशीर्वाद देकर वहाँ से चले जाते है। राजा जनक विश्वामित्र की सलाह पर राम-सीता विवाह हेतु महाराज दशरथ को बारात सहित आमंत्रित करने के लिए दूत देवव्रत को अयोध्या भेजते है। अयोध्या में भरत और शत्रुघ्न कौतूहल जागृत करते हुए राजा दशरथ और अपनी माताओं के राजा जनक का संदेश सुनाते है। संदेशा लेकर आए हुए देवव्रत को राजा दशरथ गुरु वशिष्ठ से मंत्रणा कर स्वीकृति प्रदान कर देते है और उन्हें उपहार प्रदान करना चाहते है, लेकिन देवव्रत बेटी की ससुराल से कोई भी उपहार लेने से मना कर देता है।

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    29 min
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