• ध्यानयोग: आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता
    Sep 6 2025

    इस एपिसोड में हम गीता के छठे अध्याय — ध्यानयोग — की आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता पर चर्चा करते हैं। जानिए कैसे ध्यान का अभ्यास हमें मानसिक शांति, आत्मिक उन्नति और कर्म में सफलता प्रदान करता है। डिजिटल युग की भागदौड़ और तनाव के बीच ध्यानयोग कैसे संतुलन बनाए रखता है, इसे श्रीकृष्ण के श्लोकों, एक प्रेरणादायक लघुकथा और व्यावहारिक दृष्टिकोण के माध्यम से समझा जाएगा।#कृष्णवाणी #ध्यानयोग #भगवद्गीता #गीता18योग #आध्यात्मिकप्रबोधन #Meditation #Mindfulness #BhagavadGita #KarmaAndYoga #InnerPeace

    इस चर्चा के आधार को विस्तार से समझने के लिये आप यह सुन सकते हैं- ⁠⁠⁠⁠⁠"अध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग" (Auidiobook)⁠⁠⁠⁠⁠

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    18 min
  • ध्यानयोग: विधि और अनुशासन
    Sep 3 2025

    यह अंश ध्यानयोग: विधि और अनुशासन नामक एक पुस्तक श्रृंखला से लिया गया है, जो गीता के 18 योग के सातवें खंड का अध्याय 4 है। यह खंड ध्यानयोग के अभ्यास के लिए आवश्यक सिद्धांतों और विधियों पर केंद्रित है, जिसमें सही आसन और शारीरिक स्थिति का महत्व, जैसे कुशा, मृगचर्म और वस्त्र का उपयोग करते हुए स्थिर आसन बनाना, शामिल है। स्रोत मन को स्थिर करने और आत्म-शुद्धि प्राप्त करने पर भी बल देता है, जहाँ साधक को अपने शरीर, गर्दन और सिर को सीधा रखते हुए अपनी दृष्टि को नाक के अग्रभाग पर केंद्रित करने का निर्देश दिया जाता है ताकि मन को भगवान के स्वरूप में लीन किया जा सके। इसके अतिरिक्त, यह अनुशासन और नियमितता पर जोर देता है, जिसमें संतुलित आहार और नींद बनाए रखने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। इन सिद्धांतों का पालन करने से आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है।

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    14 min
  • ध्यान और आत्मनियंत्रण
    Aug 31 2025

    आध्यात्मिक प्रबोधन की श्रवण यात्रा" पॉडकास्ट शो का यह 13वें एपिसोड ध्यान योग और आत्म-नियंत्रण पर केंद्रित है, जो "गीता-योग: और रमेश चौहान की पुस्तक श्रृंखला "आध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग" के सातवें खंड से लिया गया है। यह श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय पर आधारित है, जिसमें इंद्रियों और मन को नियंत्रित करने के महत्व पर जोर दिया गया है। स्रोत के अनुसार, आत्मज्ञान और मोक्ष प्राप्त करने के लिए मन को स्थिर करना आवश्यक है, और यह अभ्यास और वैराग्य के माध्यम से संभव है, जैसा कि भगवद्गीता के श्लोकों द्वारा स्पष्ट किया गया है। अंततः, यह आध्यात्मिक शांति और ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के लिए आत्म-नियंत्रण को एक महत्वपूर्ण मार्ग के रूप में प्रस्तुत करता है।

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  • ध्यानयोग: नियम और अभ्यास
    Aug 27 2025

    यह कड़ी भगवद्गीता के छठे अध्याय में वर्णित ध्यानयोग के नियमों और अभ्यासों की व्याख्या करता है। यह शांति, आत्मज्ञान, और स्थिरता प्राप्त करने के लिए सही वातावरण, आसन, और शारीरिक-मानसिक तैयारी के महत्व पर जोर देता है। कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेशों के माध्यम से, पाठ इंद्रियों पर नियंत्रण, शरीर की स्थिरता, और नियमित अभ्यास को ध्यान की सफलता के लिए आवश्यक बताता है। इसमें मन को शांत करने और धैर्य के साथ आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ने की प्रक्रिया का भी वर्णन किया गया है। एक दृष्टांत कथा के माध्यम से संयम और नियमितता का महत्व स्पष्ट किया गया है, जो ध्यान के माध्यम से स्थिर मन और आत्म-शांति की प्राप्ति पर केंद्रित है।

    यदि आप जीवन में स्थिरता, आत्मबल और गहराई से जीने का मार्ग खोज रहे हैं—तो यह श्रृंखला आपके लिए है।

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    17 min
  • ध्यानयोग का परिचय और महत्व
    Aug 24 2025

    गीता के 18 योग: अध्यात्मिक प्रबोधन की श्रवण यात्रा पॉडकास्ट की इस 11वीं कड़ी में प्रस्तुत है भगवद्गीता के छठे अध्याय – ध्यानयोग का सार।

    इस एपिसोड में श्रोता जानेंगे कि ध्यानयोग केवल मौन ध्यान नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार और गहन मानसिक शांति प्राप्त करने का सशक्त साधन है। इसमें बताया गया है कि सच्चा योगी या संन्यासी वह नहीं जो केवल बाहरी संसार का त्याग करता है, बल्कि वह है जो कर्तव्यों का निस्वार्थ भाव से पालन करता है, बिना फल की आसक्ति के

    एक प्रेरक लघुकथा के माध्यम से यह समझाया गया है कि संसार में रहते हुए भी निस्वार्थ कर्म और ईश्वर को समर्पण ही मोक्ष का सच्चा मार्ग है। अंततः, यह अध्याय सिखाता है कि मन, इंद्रियों और आत्मा के संतुलन के बिना न तो ध्यान संभव है और न ही शांति।

    ✨ यह कड़ी हर उस साधक के लिए है जो आधुनिक जीवन की व्यस्तताओं के बीच भी ध्यान, शांति और आत्म-ज्ञान की तलाश में है।

    🪷 टैगलाइन:
    "ध्यान ही वह सेतु है, जो मनुष्य को आत्मा से और आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है।"

    यदि आप जीवन में स्थिरता, आत्मबल और गहराई से जीने का मार्ग खोज रहे हैं—तो यह श्रृंखला आपके लिए है।

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    13 min
  • कर्मसंन्यास: कर्म और त्याग का मार्ग
    Aug 20 2025

    गीता-योग: अध्यात्मिक प्रबोधन की श्रवण यात्रा पॉडकास्ट शो की इस दसवीं कड़ी में हम श्रीमद्भगवद्गीता के कर्मसंन्यासयोग अध्याय में प्रवेश करते हैं। यह कड़ी उन गहन सिद्धांतों को उजागर करती है जो कर्म और संन्यास के बीच संतुलन स्थापित करते हैं।

    श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि यद्यपि संन्यास (कर्म का त्याग) एक मार्ग है, परंतु कर्मयोग उससे श्रेष्ठ है। कर्मयोग हमें सिखाता है कि हम संसार में रहते हुए भी अपने कर्तव्यों का पालन निष्काम भाव से कर सकते हैं। जैसे कमल-पत्र जल में रहते हुए भी जल से अछूता रहता है, वैसे ही कर्मयोगी संसार के बीच रहते हुए भी आसक्ति से मुक्त रहता है।

    यह एपिसोड श्रोताओं को यह समझने में मदद करता है कि कर्म और त्याग का सही अर्थ क्या है, और कैसे आधुनिक जीवन – चाहे कार्यस्थल हो, परिवार हो या समाज – में कर्मयोग का अभ्यास हमें संतुलन, शांति और आत्म-शुद्धि की ओर ले जा सकता है।

    ✨ आइए सुनें और समझें कि श्रीकृष्ण का यह संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि पर था।

    यदि आप जीवन में स्थिरता, आत्मबल और गहराई से जीने का मार्ग खोज रहे हैं—तो यह श्रृंखला आपके लिए है।

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    5 min
  • “ज्ञानविज्ञानयोग – आत्मिक और भौतिक संतुलन”
    Aug 15 2025
    गीता-योग: अध्यात्मिक प्रबोधन की श्रवण यात्रा के इस नौवें एपिसोड में हम श्रीमद्भगवद गीता के सातवें अध्याय — ज्ञानविज्ञानयोग — की गहराइयों में उतरेंगे। यह अध्याय न केवल दार्शनिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे जीवन के भौतिक और आध्यात्मिक पहलुओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने का एक व्यावहारिक मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि आध्यात्मिक यात्रा में केवल ज्ञान (सैद्धांतिक या बौद्धिक समझ) ही पर्याप्त नहीं है; विज्ञान (प्रत्यक्ष अनुभव और साक्षात्कार) भी उतना ही आवश्यक है। ज्ञान वह है जो हमें शास्त्रों, गुरुओं और तर्क से प्राप्त होता है — जैसे आत्मा, ईश्वर और ब्रह्मांड के सिद्धांतों की समझ।विज्ञान, इसके विपरीत, उस ज्ञान का प्रत्यक्ष अनुभव है, जो साधना, भक्ति और ध्यान के माध्यम से आत्मसात होता है। जब ये दोनों एक साथ आते हैं, तो व्यक्ति न केवल सिद्धांत जानता है, बल्कि उसे जीता भी है।श्रीकृष्ण ब्रह्मांड की रचना को दो प्रकार की प्रकृति में विभाजित करते हैं:अपरा प्रकृति – यह भौतिक प्रकृति है, जिसमें पाँच महाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश), मन, बुद्धि और अहंकार शामिल हैं। यह परिवर्तनशील और नश्वर है।परा प्रकृति – यह जीवात्मा या चेतना है, जो अविनाशी, शुद्ध और अनंत है।यह शिक्षण हमें यह समझाता है कि हमारा शरीर और मन अपरा प्रकृति का हिस्सा हैं, जबकि हमारा वास्तविक ‘स्व’ परा प्रकृति का अंश है, जो ईश्वर से सीधा जुड़ा हुआ है।श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि माया — उनकी दिव्य शक्ति — जीवात्मा को अपने वास्तविक स्वरूप से दूर कर देती है। माया के प्रभाव से व्यक्ति भौतिक इच्छाओं, अहंकार, और अस्थायी सुखों में उलझा रहता है।माया का यह आवरण तभी हटता है जब व्यक्ति पूर्ण भक्ति और आत्मसमर्पण के मार्ग पर चलता है। यह संदेश आधुनिक जीवन में भी उतना ही प्रासंगिक है, क्योंकि आज भी हमारी व्यस्त जीवनशैली, भौतिक इच्छाएं और सोशल मीडिया जैसी विकर्षण शक्तियाँ हमें अपने आंतरिक स्वरूप से दूर कर देती हैं।गीता में तीन गुणों — सत्त्व (शुद्धता), रजस (क्रियाशीलता) और तमस (जड़ता) — का वर्णन है। ये तीनों प्रकृति के मूल घटक हैं, जो हमारे विचारों, भावनाओं और कर्मों को प्रभावित करते हैं।सत्त्व हमें ज्ञान, ...
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    9 min
  • सांख्य योग: ज्ञान का मार्ग और आत्मा की पहचान
    Aug 12 2025

    इस कड़ी में हम श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय "सांख्य योग" पर चर्चा करेंगे, जिसे गीता का हृदय भी कहा जाता है। सांख्य योग वह ज्ञानमार्ग है जो आत्मा और शरीर के बीच के भेद को स्पष्ट करता है, जीवन और मृत्यु के रहस्य को उजागर करता है, तथा स्थिर बुद्धि और समत्वभाव का संदेश देता है।

    भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद के माध्यम से हम जानेंगे—

    • आत्मा की नित्य, अविनाशी और अजर-अमर प्रकृति

    • मृत्यु के भय को कैसे दूर करें

    • अपने कर्तव्य को बिना आसक्ति के निभाने का महत्व

    • सुख-दुःख, लाभ-हानि और जय-पराजय में समभाव बनाए रखने का मार्ग

    यह एपिसोड केवल शास्त्रीय ज्ञान ही नहीं, बल्कि आधुनिक जीवन में मानसिक शांति, निर्णय लेने की क्षमता और आत्म-स्थिरता को भी बढ़ाने का मार्गदर्शन देगा।

    यदि आप जीवन में स्थिरता, आत्मबल और गहराई से जीने का मार्ग खोज रहे हैं—तो यह श्रृंखला आपके लिए है।

    इस चर्चा के आधार को विस्तार से समझने के लिये आप यह सुन सकते हैं- ⁠"अध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग" (Auidiobook)⁠इसे पढ़ना चाहे तो आप इस सीरिज के ईपुस्तकें पढ़ सकते हैं-⁠"आध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग"


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    8 min